Leadership
देखिए, जब ताली और थाली बजाने की ऐक्टिविटी कराई गई थी तो अचानक से अकल्पनीय स्थितियों में फंसे लोगों में एक अलग उत्साह का संचार हुआ। ज्यादातर लोगों ने घर की बालकनी में खड़े होकर लंबे वक्त बाद अपने आस-पड़ोस को देखा। इससे नकारात्मक विचारों से घिरते हुए समाज को एक मानसिक सहयोग मिला कि इन परिस्थियों में हम सभी एक-दूसरे के साथ हैं। तो अकेलेपन का भाव दूर हुआ।
भावनात्मक मजबूती का प्रयास
हमें इस बात को समझने का प्रयास करना होगा कि हमारी लीडरशिप ने हमारे समाज की ऐसी कौन-सी दिक्कत को भांप लिया है कि वे हमें भावनात्मक रूप से मजबूत बनाने की कोशिश में जुटे हैं। दरअसल, सोशल डिस्टेंसिंग के चलते कहीं इमोशनल डिस्टेंसिंग ना हो जाए। लोग एंग्जाइटी, लोनलीनेस और आर्थिक नुकसान के चलते डिप्रेशन में ना आ जाएं, इसलिए यह लोगों को भावनात्मक मजबूती देने के प्रयास हैं।
सिक्यॉरिटी की फीलिंग को बढ़ाना
इस बात को भांपते ही कि लोगों के अंदर निराशा, बोरडम, चिंता, साथ ही एक-दूसरे से ना मिल पाना, पास ना होना जैसी स्थितियों से लोगों में सुरक्षा की भावना कम होती जा रही है…। जबकि हमारा भारतीय समाज एक-दूसरे की परेशानी में साथ खड़ा होनेवाला और मदद करनेवाली मानसिकता रखता है। लेकिन आज की स्थितियों में लोग एक अलग-सी लाचारी महसूस कर रहे हैं। इस लाचारी को मन पर हावी ना होने देना बहुत जरूरी है। इसलिए सोशल डिस्टेंसिंग के साथ इस तरह की सामूहिक गतिविधियां आज के वक्त में जरूरी हैं।
एक नए जोश का संचार
अब लोगों के अंदर इस तरह के विचार आने लगे हैं कि पता नहीं कल क्या होगा, जिंदा रहेंगे भी या नहीं रहेंगे। लगातार नकारात्मक खबरें आ रही हैं। लोगों के मन में सवाल उठ रहे हैं कि अगर राजपरिवारों (लंदन के प्रिंस) के लोग भी इस बीमारी के संक्रमण से नहीं बच पा रहे हैं तो हम सामान्य लोग कैसे सुरक्षित रह सकते हैं? अगर इस तरह का डर किसी समाज के मन पर हावी हो जाए तो यह बहुत अधिक घातक हो सकता है। इससे बचाने की दिशा में ये कोशिश है।
ऐसी कौन-सी बात थी जिसने लोगों को आहत किया
-अचानक लॉकडाउन होना
-इस वायरस का इतना भयावह रूप ले लेना
-संपन्न देश अपने लोगों को लगातार खो रहे हैं
-लोग अपने परिजनों के अंतिम संस्कार में भी नहीं जा पा रहे हैं तो यह बात लोगों को चिंता में डाल रहे हैं।
– इस तरह की विपदा के लिए लोग तैयार नहीं थे।
– परिवार की आर्थिक स्थिति भी चिंता बढ़ा सकती है।
-नेगेटिव कोपिंग स्किल्स बढ़ रही हैं। लोग चाहते हुए भी विदेशों से आए अपने रिश्तेदारों से नहीं मिल पा रहे हैं।
-कोरोना का डर हमारी भावनाओं पर भारी पड़ रहा है।
– सोशल डिस्टेंसिंग के कारण फैमिली बॉन्ड, सोशल सपॉर्ट आदि मानवीय भावों को बहुत अधिक नुकसान हो रहा है।
नाइलीस्टिक (शून्यता) थॉट्स कम करने का प्रयास
– हर कल्चर के कुछ प्रोटेक्टिव फैक्टर्स होते हैं। इंडियन कल्चर के इमोशनल डोमेन को बूस्ट करने की कोशिश कर रहे हैं मोदी जी। वह भी सोशल अवेयरनेस के साथ। थाली बजाने या दीया जलाने के बाद आपने भी अपने अंदर पॉजिटिविटी फील की होगी।
– भारतीय कल्चर में लोग इमोशन्स को कंट्रोल करना जानते हैं। खुद की भावनाओं को स्थितियों के रेग्युलेट कर सकते हैं। इस बात का अहसास सोसायटी को कराते रहना जरूरी है। ताकि लोग अपनी ताकत से जुड़े रहें।
मनोरोगियों की बाढ़ रोकने का प्रयास
-आपके साथ हो रहा है वो दूसरे के साथ भी हो रहा है। हमारे समाज में स्थितियों को स्वीकार करने की सकारात्मकता बहुत अच्छी है। लीडरशिप हमारे समाज की इसी खूबी को उभारने की कोशिश कर रही है। ताकि समाज में मनोरोगों की बाढ़ आने से रोकी जा सके।
-कलेक्टिव कॉन्शियसनेस को जगाते हुए अपनी और समाज की दिक्क्तों को सुलझाने की कोशिश हैं इस तरह की ऐक्टिविटीज। आप अपने घर से आस-पड़ोस में देखें, एक-दूसरे को अपने साथ महसूस कर सकें।
– एक-दूसरे की मदद करना, भूखों को खाना खिलाना, बुरे वक्त में दूसरों के साथ खड़ा होना…इसी कलेक्टिव कॉन्शियसनेस को बढ़ाने की दिशा में लीडरशिप का यह एक प्रयास है।
सबको एक सूत्र में पिरोने के लिए
समाज में बढ़ रहे गैप को कम करना और इमोशनल बॉन्ड को मजबूत करने की दिशा में एक कदम है। ताकि सभी समाज के लोग एक साथ बंधा हुआ महसूस करें। इसलिए दीया, मोमबत्ती और मोबाइल की टॉर्च जलाने का ऑप्शन दिया गया ताकि किसी को ऐसा ना महसूस हो कि कोई भी कम हमारी कम्यूनिटी के खिलाफ है। अपने-अपने कल्चर का सम्मान करते हुए सभी लोग खुद को एक सूत्र में बंधा हुआ महसूस करें।